हिंदी साहित्य का इतिहास काल विभाजन
आदि काल 900 ई. से 1350 ई. तक
भक्ति काल
हिन्दी साहित्य
का भक्ति काल 1375 से 1700 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से
ओतप्रोत है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं –
• निर्गुण भक्तिधारा
संत काव्य (ज्ञानाश्रयी शाखा) :- इस शाखा के प्रमुख कवि, कबीर, नानक, रैदास, आदि हैं।
सूफी काव्य
(प्रेमाश्रयी शाखा) :- इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- मलिक मोहम्मद जायसी, मंझन, आदि।
• सगुण भक्तिधारा।
1. रामाश्रयी
शाखा:- रामाश्रयी शाखा के प्रमुख
कवि हैं- तुलसीदास, केशवदास, आदि ।
2. कृष्णाश्रयी
शाखा:- प्रमुख कवि हैं- सूरदास, नंददास, कुम्भनदास, कृष्णदास, मीरा, रसखान, रहीम आदि।
चार प्रमुख कवि
जो अपनी-अपनी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कवि हैं (क्रमशः)
कबीरदास
(१३९९)-(१५१८)
मलिक मोहम्मद
जायसी (१४७७-१५४२)
सूरदास
(१४७८-१५८०)
तुलसीदास
(१५३२-१६०२)
रीति काल
मुख्य लेख: रीति
काल
हिंदी साहित्य का
रीति काल 1643ई० से 1843ई० तक माना जाता है। रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या
बंधी-बंधाई परिपाटी। इस काल को रीतिकाल कहा गया क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों
ने श्रृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद बद्धता आदि के बंधे रास्ते की ही कविता की।
केशव (१५४६-१६१८), बिहारी (१६०३-१६६४),
भूषण (१६१३-१७०५), आदि इस युग के प्रमुख रचनाकार रहे।
आधुनिक काल 1857
से अब तक
·
पुनर्जागरण काल अथवा भारतेंदु काल (1857-1900)
·
जागरणसुधार काल अथवा द्विवेदी काल (1900-1918)
·
छायावाद काल (1918-1938
·
छायावादोत्तर काल
§ प्रगतिकाल अथवा प्रयोगकाल (1938-1953)
§ नवलेखन काल (1953- से अब तक)
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